हम कितने दिन जिए
ये जरुरी नहीं...!!!
हम उन दिनों में कितना
जिए ये जरुरी है...!!!
ख़ात्मा-ए-मोहब्बत
मुमकिन नही है पाक मोहब्बत मे ज़नाब...!!!
ये तो बस कुछ वक़्त
की बेरुख़ी का मुकम्मल असर होती है...!!!
करीब से देखने पर
भी ज़िन्दगी का मतलब समझ नही आया हमें...!!!
मालूम होता है अपने
ही शहर में भूला हुआ मुसाफ़िर हूँ...!!!
मत पूछो उनसे यादों
की कीमत जो खुद ही यादों को मिटा दिया करते हैं...!!!
यादों की कीमत तो
वो जानते हैं जो सिर्फ यादों के सहारे जिया करते हैं...!!!
अंदाज़ा नही था संगदिल
शख़्स से मोहब्बत अदा फ़रमा रहें हैं...!!!
ग़र मालूम होता तो
कभी रुख़्सत भी ना होते शहर-ए-मोहब्बत से...!!!
अब छोड़ दी है उसकी
आरज़ू हमेशा के लिए सागर...!!!
जिसे मोहब्बत की क़दर
ना हो उसे दुआओं में क्या माँगना...!!!
अज़ीब सी कश्मकश मे
उलझ कर रह गयी है आजकल ज़िन्दगी हमारी...!!!
उन्हें याद करना नही
चाहते और भूलना तो जैसे नामुमकिन सा है...!!!
एक तरफ़ दामन-ए-मोहब्बत
और दूसरी तरफ़ है फ़र्ज़ हमारा...!!!
अब तू ही बता ऐ ज़िन्दगानी
! तेरा क़र्ज़ किस तरह अदा किया जाये...!!!
देखा है आज मुझे भी
गुस्से की नज़र से...!!!
मालूम नहीं आज वो
किस-किस से लड़े है...!!!
सुकून मिलता है दो
लफ्ज़ कागज पे उतार कर...!!!
कह भी देता हूँ और
आवाज भी नहीं होती...!!!
डरता हूँ इक़रार से
कहीं वो इनकार न कर दे...!!!
यूँ ही तबाह अपनी
जिंदगी हम यार न कर दे...!!!
चलो आज शायरी की हवा
बहाते हैं...!!!
तुम उठा लाओ मीर ग़ालिब
की नज़्में...!!!
और हम अपनी दास्ताँ
सुनाते हैं...!!!
यूँ चले जाते हैं
अपनी ही महफ़िल से
रुखसत होकर
यूँ दिल को लगाकर
जलाना कोई उनसे सीखे...!!!
मुकद्दर की लिखावट
का इक ऐसा भी कायदा हो...!!!
देर से क़िस्मत खुलने
वालों का दुगुना फ़ायदा हो...!!!
मैं नासमझ ही सही
मगर वो तारा हूँ जो...!!!
तेरी एक ख्वाहिश के
लिए सौ बार टूट जाऊं...!!!
क्यों उलझता रहता
है तू लोगो से फराज...!!!
ये जरूरी तो नहीं
वो चेहरा सभी को प्यारा लगे...!!!
वो पहले सा कहीं...!!!
मुझको कोई मंज़र नहीं लगता...!!!
यहाँ लोगों को देखो...!!!
अब ख़ुदा का डर नहीं लगता...!!!
कोई ताबीज़ ऐसा दो
कि मैं चालाक हो जाऊं...!!!
बहुत नुकसान देती
है मुझे ये सादगी मेरी...!!!
आ भी जाओ मेरी आँखों
के रूबरू अब तुम...!!!
कितना ख्वावों में
तुझे और तलाशा जाए...!!!
अल्फ़ाज़ चुराने की
ज़रूरत ही ना पड़ी कभी...!!!
तेरे बे-हिसाब ख्यालों
ने बे-तहाशा लफ्ज़ दिए...!!!
आसान नही आबाद करना
घर मोहब्बत का...!!!
ये उनका काम हे जो
ज़िदगी बरबाद करते हैं...!!!
तू घड़ी भर के लिए
मेरी नज़रो के सामने आजा...!!!
एक मुद्द्त से मैंने
खुद को आईने में नहीं देखा...!!!
कितनी जल्दी दूर चले
जाते है वो लोग...!!!
जिन्हें हम जिंदगी
समझ कर कभी खोना नहीं चाहते...!!!
आज कोई नया जख्म नहीं
दिया उसने मुझे...!!!
कोई पता करो वो ठीक
तो है ना...!!!
कहाँ नहीं तेरी यादों
के कांटे...!!!
कहाँ तक कोई दामन
बचा के चले...!!!
दम तोड़ जाती है हर
शिकायत लबों पे आकर...!!!
जब मासूमियत से वो
कहती है मैंने क्या किया है?
उसके सिवा किसी और
को चाहना मेरे बस में नहीं...!!!
ये दिल उसका है...!!!
अपना होता तो बात और थी...!!!
उस दिल की बस्ती में
आज अजीब सा सन्नाटा हैं ...!!!
जिस में कभी तेरी
हर बात पर महफ़िल सज़ा करती थी...!!!
तेरा नज़रिया मेरे
नज़रिये से अलग था...!!!
शायद तुझे वक्त...!!!
गुज़ारना था और मुझे जिन्दगी...!!!
डरता हूँ कहने से
की मोहब्बत है तुम से...!!!
कि मेरी जिंदगी बदल
देगा तेरा इकरार भी और इनकार भी...!!!
सलीक़ा हो अगर भीगी
हुई आँखों को पढने का...!!!
तो फिर बहते हुए आंसू
भी अक्सर बात करते हैं...!!!
ये भी एक तमाशा है
इश्क ओ मोहब्बत में...!!!
दिल किसी का होता
है और बस किसी का चलता है...!!!
ख्वाहिश नहीं मुझे
मशहूर होने की...!!!
आप मुझे पहचानते हो
बस इतना ही काफी है...!!!
अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा जाना मुझे...!!!
क्योंकी जिसकी जितनी
जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे...!!!
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा
भी कितना अजीब है...!!!
शामें कटती नहीं...!!!
और साल गुज़रते चले जा रहे हैं...!!!
बैठ जाता हूं मिट्टी
पे अक्सर...!!!...!!!...!!!
क्योंकि मुझे अपनी
औकात अच्छी लगती है...!!!
मैंने समंदर से सीखा
है जीने का सलीक़ा...!!!
चुपचाप से बहना और
अपनी मौज में रहना...!!!
ऐसा नहीं है कि मुझमें
कोई ऐब नहीं है पर
सच कहता हूँ मुझमे
कोई फरेब नहीं है...!!!
मेरा वक़्त बोला मेरी
हालत को देख कर...!!!
मैं तो गुजर रहा हूँ
तू भी गुजर क्यों नहीं जाता...!!!
जागना भी कबूल हैं
तेरी यादों में रात भर...!!!
तेरे एहसासों में
जो सुकून है वो नींद में कहाँ ...!!!
इतना ही गुरुर है
तो मुकाबला इश्क से कर ऐ बेवफा...!!!
हुस्न पर क्या इतराना
जो मेहमान है कुछ दिन का...!!!
कमाल का जिगर रखते
है कुछ लोग...!!!
दर्द पढ़ते है और आह
तक नहीं करते...!!!
ना मैं शायर हूँ ना
मेरा शायरी से कोई वास्ता...!!!
बस शौक बन गया है...!!!
तेरे जलवों को बयान करना...!!!
मुस्कुरा देता हूँ
अक्सर देखकर पुराने खत तेरे...!!!
तू झूठ भी कितनी ईमानदारी
से लिखती थी...!!!
एक उमर बीत चली है
तुझे चाहते हुए...!!!
तू आज भी बेखबर है
कल की तरह...!!!
तेरी गली में आकर
के खो गये हैं दोंनो...!!!
मैं दिल को ढ़ूँढ़ता
हुँ दिल तुमको ढ़ूँढ़ता है...!!!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया
में फ़ना हो जाना...!!!
दर्द का हद से गुज़रना
है दवा हो जाना...!!!
उग रहा है दर-ओ-दीवार
से सबज़ा ग़ालिब...!!!
हम बयाबां में हैं
और घर में बहार आई है...!!!
घर में था क्या कि
तेरा ग़म उसे ग़ारत करता...!!!
वो जो रखते थे हम
इक हसरत-ए-तामीर सो है...!!!
ज़िंदगी अपनी जब इस
शक्ल से गुज़री...!!!
हम भी क्या याद करेंगे
कि ख़ुदा रखते थे...!!!
ता हम को शिकायत की
भी बाक़ी न रहे जा...!!!
सुन लेते हैं गो ज़िक्र
हमारा नहीं करते...!!!
ग़ालिब तिरा अहवाल
सुना देंगे हम उन को...!!!
वो सुन के बुला लें
ये इजारा नहीं करते...!!!
मुँद गईं खोलते ही
खोलते आँखें ग़ालिब...!!!
यार लाए मेरी बालीं
पे उसे पर किस वक़्त...!!!
लो हम मरीज़-ए-इश्क़
के बीमार-दार हैं...!!!
अच्छा अगर न हो तो
मसीहा का क्या इलाज...!!!
सिसकियाँ लेता है
वजूद मेरा गालिब...!!!
नोंच नोंच कर खा गई
तेरी याद मुझे...!!!
इश्क़ पर ज़ोर नहीं
है ये वो आतिश ग़ालिब...!!!
कि लगाए न लगे और
बुझाए न बने...!!!
बोसा देते नहीं और
दिल पे है हर लहज़ा निगाह...!!!
जी में कहते हैं कि
मुफ़्त आए तो माल अच्छा है...!!!
ज़िक्र उस परी-वश
का और फिर बयाँ अपना;
बन गया रक़ीब आख़िर
था जो राज़-दाँ अपना...!!!
कोई मेरे दिल से पूछे
तेरे तीर-ए-नीम-कश को...!!!
ये ख़लिश कहाँ से
होती जो जिगर के पार होता...!!!
मर्जी से जीने की
बस ख्वाहिश की थी मैंने...!!!
और वो कहते हैं कि
खुदगर्ज बन गये हो तुम...!!!
लिखना तो ये था कि
खुश हूँ तेरे बगैर भी...!!!
पर कलम से पहले आँसू
कागज़ पर गिर गया
चेहरे अजनबी हो जाये
तो कोई बात नही...!!!
रवैये अजनबी हो कर
बडी तकलीफ देते हैं...!!!
ना जाने वक्त खफा
है या खुदा नाराज है हमसे...!!!
दम तोड़ देती है हर
खुशी मेरे घर तक आते आते...!!!
पत्थर भी तो अब मुझसे
किनारा करने लगे...!!!
कि तुम ना सुधरोगे
मेरी ठोकरे खा कर...!!!
दिल में अब यूँ तेरे
भूले हुये ग़म आते हैं...!!!
जैसे बिछड़े हुये
काबे में सनम आते हैं...!!!
तुम्हारी याद के जब
ज़ख़्म भरने लगते हैं...!!!
किसी बहाने तुम्हें
याद करने लगते हैं...!!!
ये आरज़ू भी बड़ी
चीज़ है मगर हमदम...!!!
विसाल-ए-यार फ़क़त
आरज़ू की बात नहीं...!!!
दिल से हर मामला कर
के चले थे साफ़ हम...!!!
कहने में उनके सामने
बात बदल गयी...!!!
दिल ना-उमीद तो नहीं
नाकाम ही तो है;
लम्बी है ग़म की शाम
मगर शाम ही तो है...!!!
आए तो यूँ कि जैसे
हमेशा थे मेहरबान...!!!
भूले तो यूँ कि गोया
कभी आश्ना न थे...!!!
तुम्हारी याद के जब
ज़ख़्म भरने लगते हैं...!!!
किसी बहाने तुम्हें
याद करने लगते हैं...!!!
दाद देते है तुम्हारे
नजर-अंदाज करने के हुनर को
जिसने भी सिखाया वो
उस्ताद कमाल का होगा...!!!
दौड़ती भागती दुनिया
का यही तोहफा है...!!!
खूब लुटाते रहे अपनापन
फिर भी लोग खफ़ा हैं...!!!
मयखाने से पूछा आज
इतना सन्नाटा क्यों है...!!!
बोला साहब लहू का
दौर है शराब कौन पीता है...!!!
डरता हूँ कहने से
मैं...!!! कि मोहब्बत है तुमसे...!!!
मेरी ज़िंदगी बदल देगा...!!!
तेरा इक़रार भी इंकार भी...!!!
आसान नही है हमसे
यूँ शायरिओं में जीत पाना...!!!
हम हर एक शब्द मोहब्बत
में हार कर लिखते है...!!!
न मेरा नाम था न दाम
था
बाजारे मोहब्बत में...!!!
तुमने भाव पूछकर अनमोल
कर दिया...!!!
तुम अपने ज़ुल्म की
इन्तेहा कर दो...!!!
न जाने...!!!...!!!...!!!
फिर कोई हम सा बेजुबां
मिले ना मिले ...!!!
यकीन नहीं होता फिर
भी कर ही लेता हूँ...!!!
जहाँ इतने हुए एक
और फरेब हो जाने दो ...!!!
ज़िन्दगी में सारा
झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है
ना तो किसी को गम
चाहिए...!!!...!!!...!!!
ना ही किसी को कम
चाहिए ...!!!
कभी हो मुखातिब तो
कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा...!!!
अब तुम दूर से पूछोगे
तो ख़ैरियत ही कहेंगे...!!!...!!!
बच के रहना ऐसे लोगों
से मेरे दोस्तों...!!!
जिनके दिल में भी
एक दिमाग रहता है ...!!!
हवाएँ हड़ताल पर हैं
शायद...!!!
आज तुम्हारी खुशबू
नहीं आई ...!!!
हर मर्ज़ का इलाज़
मिलता था उस बाज़ार में...!!!
मोहब्बत का नाम लिया
दवाख़ाने बन्द हो गये...!!!
तेरी यादें हर रोज़
आ जाती है मेरे पास...!!!
लगता है तुमने बेवफ़ाई
नही सिखाई इनको...!!!
शिकायत करूँ तो किससे
करूँ...!!! ये तो क़िस्मत की बात है...!!!
तेरी सोच में भी मैं
नहीं...!!! मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद है...!!!
हमारे पास तो बस कुछ
यादें है तुम्हारी...!!!...!!!...!!!
जिन्दगी उन्हें मुबारक
जिनके पास तुम हो...!!!
परवाने को शमा पर
जल कर कुछ तो मिलता होगा...!!!
सिर्फ मरने की खातिर
तो कोई प्यार नहीं करता ...!!!
सीख कर गया है वो
मोहब्बत मुझसे...!!!
जिस से भी करेगा बेमिसाल
करेगा...!!!
हुस्न वालों ने क्या
कभी की ख़ता कुछ भी ?
ये तो हम हैं सारे
इलज़ाम लिये फिरते हैं...!!!
प्यास इतनी है मेरी
रूह की गहराई में...!!!
अश्क गिरता है तो
दामन को जला देता है...!!!
पूछते हैं मुझसे की
शायरी लिखते हो क्यों
लगता है जैसे आईना
देखा नहीं कभी ...!!!
अब ढूढ़ रहे हैं वो
मुझ को भूल जाने के तरीके...!!!
खफा हो कर उसकी मुश्किलें
आसान कर दी मैंने ...!!!
वादा करके और भी आफ़त
में डाला आपने...!!!
ज़िन्दगी मुश्किल
थी...!!! अब मरना भी मुश्किल हो गया
...!!!
वो कहानी थी...!!!
चलती रही...!!!
मै किस्सा था...!!!
खत्म हुआ ...!!!
उसने जी भर के मुझको
चाहा था...!!!
फ़िर हुआ यूँ के उसका
जी भर गया...!!!
हमने कब कहा कि कीमत
समझो तुम हमारी...!!!
ग़र हमें बिकना ही
होता तो आज यूँ तनहा न होते...!!!
हवा से कह दो खुद
को आज़मा के दिखाये...!!!
बहुत चिराग बुझाती
है एक जला के दिखाये...!!!
अब क्यों न ज़िन्दगी
पे मुहब्बत को वार दें
इस आशिक़ी में जान
से जाना बहुत हुआ ...!!!
चलो बिखरने देते है
जिंदगी को अब...!!!
सँभालने की भी तो
एक हद होती है ...!!!
बारिशें कुछ इस तरह
से होती रही मुझ पे...!!!
ख्वाहिशें सूखती रही
और पलके भीगती रही...!!!
कई आँखों में रहती
है कई बांहें बदलती है...!!!
मुहब्बत भी सियासत
की तरह राहें बदलती है...!!!
न ख़ुशी की तलाश है...!!!
न ग़म-ए-निजात की आरज़ू...!!!
मैं खुद से भी नाराज
हूँ तेरी नाराज़गी के बाद ...!!!
अभी तो साथ चलना है...!!!
समंदर की मुसाफत में...!!!
किनारे पर ही देखेंगे...!!!
किनारा कौन करता है ...!!!
मोहब्बत के काफिले
को कुछ देर तो रोक लो...!!!
आते है हम भी पाँव
से कांटे निकाल कर ...!!!
तमन्ना यही है बस
एक बार आये...!!!
चाहे मौत आये...!!!...!!!...!!!
चाहे यार आये...!!!...!!!...!!! ...!!!
मुझसे छीनो न दिल
की वीरानी...!!!
यह अमानत किसी अजनबी
की है ...!!!
फरियाद कर रही है
यह तरसी हुई निगाह...!!!
देखे हुए किसी को
ज़माना गुजर गया ...!!!
बिखरने का सब़ब क्या
कहें यारों किसी से अब...!!!
काँच टूटता है तो
कुछ टुकड़े समेटने में नहीं आते...!!!
मुद्दत के बाद उसने
जो आवाज़ दी मुझे...!!!
कदमों की क्या बिसात
थी...!!! साँसे ठहर गयीं...!!!
उम्मीद ना कर इस दुनिया
में हमदर्दी की...!!!
बड़े प्यार से जख्म
देते हैं शिद्दत से चाहने वाले...!!!
अपनी शख्शियत की क्या
मिसाल दूँ यारों...!!!...!!!...!!!
ना जाने कितने मशहूर
हो गये
मुझे बदनाम करते करते...!!!
छेड़ आती हैं कभी
लब तो कभी रूखसारों को
तुमने ज़ुल्फ़ों को
बहुत सर पर चढा रखा है ...!!!
राह में मिले थे हम...!!!
राहें नसीब बन गईं...!!!
ना तू अपने घर गया...!!!
ना हम अपने घर गये ...!!!
ये न जाने थे कि उस
महफ़िल में दिल रह जाएगा...!!!
हम ये समझे थे कि
चले आएँगे दम भर देख कर...!!!
तेरे लिए कभी इस दिल
ने बुरा नहीं चाहा...!!!
ये और बात हैं कि
मुझे ये साबित करना नहीं आया ...!!!
फिर वही दिल की गुज़ारिश...!!!
फिर वही उनका ग़ुरूर...!!!
फिर वही उनकी शरारत...!!!
फिर वही मेरा कुसूर
...!!!...!!!
वो सुना रहे थे अपनी
वफाओ के किस्से...!!!
हम पर नज़र पड़ी तो
खामोश हो गए ...!!!
इक छोटी सी ही तो
हसरत है
इस दिल ए नादान की...!!!
कोई चाह ले इस कदर
कि खुद पर गुमान हो
जाए ...!!!
अजीब सी बेताबी है
तेरे बिना...!!!...!!!...!!!
रह भी लेते है और
रहा भी नही जाता ...!!!
तेरी तलाश में निकलू
भी
तो क्या फायदा...!!!...!!!...!!!
तुम बदल गए हो
खो गए होते तो और
बात थी ...!!!
तुम फिर उसी अदा से
अंगड़ाई ले के हँस
दो...!!!
आ जाएगा पलट कर
फिर गुज़रा हुआ ज़माना
...!!!